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Haldi Book Medical House | Hindi Book
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भारत के बड़े-बड़े चिकित्सक हल्दी के गुणों पर काफी समय से अनुसन्धान कर रहे हैं तथा इस परिणाम पर पहुँचे हैं कि हल्दी में काफी रोगों को दूर करने के गुण हैं।
डॉक्टर नाडकर्णी ने इसको शक्तिदायक, उत्तेजक, वायु निकालने वाली तथा कीड़े मारने वाली बताया है। डॉ. बास ने इसमें पेनीसिलीन तथा स्ट्रेप्टोमाईसिन की भाँति कीटाणुनाशक गुण लिखे हैं। यह ग्राम पॉजिटिव व ग्राम नेगेटिव प्रकार के कई कीटाणुओं को नष्ट करती है।
डॉ. शंकर ने फेफड़ों के 114 रोगियों को हल्दी खिलाकर चिकित्सा की। वे दमा (श्वास रोग), ब्रोंकाईटिस (फेफड़ों की वायु नालियों की शोथ) तथा वायु प्रणालियों के फैल जाने (Bronchiectasis) में 4 से 32 ग्राम पिसी हल्दी दिन भर में कई मात्राओं में बाँटकर पहले कम मात्रा में शुरू करके धीरे-धीरे मात्रा बढ़ाते गये। इससे रोगियों के ये रोग बहुत शीघ्र कम हो गये। हल्दी से कई रोगियों के फेफड़ों की वायु प्रणालियों की रुकावट भी दूर हो गई।
कुछ वर्षों पूर्व दिल्ली में श्वास रोग पर विचार करने के लिये संसार के विभिन्न देशों के चिकित्सकों का एक सम्मेलन हुआ था। उसमें दो चिकित्सकों ने कहा कि हल्दी के प्रयोग से इस रोग में लाभ पहुँचता है।
डॉ. गर्ग ने मादा खरगोशों, मादा चूहों और गिनी पिग्ज पर इसके एक्सट्रैक्ट का प्रयोग किया जिससे उनके गर्भाशय में सुकड़ाव पैदा होने आरम्भ हो गये तथा अधिक मात्रा में देने से तेजी से हल्दी के उपयोग
सुकड़ाव होकर उनका गर्भ गिर गया। तात्पर्य यह है कि हल्दी क एक्सट्रैक्ट गर्भ गिराने और गर्भ निरोधक की सफल औषधि है।
डॉ. सिन्हा हल्दी का एक्सट्रैक्ट रोगियों को खिलाते रहे जिसा उनका ब्लड प्रेशर गिर जाता है। इससे उनके अंगों में ऐण्ठर आक्षेप, झटके लगना आदि में भी कमी आ गई।
हल्दी के गुणों के सम्बन्ध में निघण्टु कारों का मत है कि-हरिखा कटु, तिक्त, रूक्ष, गरम, वर्ण करने वाली, कफ, पित्त, त्वचा के दोष प्रमेह, रक्तदोष, सूजन, पांडु रोग और घावों को ठीक करती है। निघण्टुकारों का मत है कि यह वायु के दोषों को भी दूर करती है।
हल्दी वैसे तो 4 प्रकार की होती है- (1) वन हल्दी (2) जआंगा हल्दी (जिसे कपूर हल्दी भी कहते हैं) (3) दारू हल्दी (4) साधारण हल्दी। इन चारों हल्दियों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण वही हल्दी है जे प्रतिदिन व्यवहार में आती है तथा जिसके गुणों का वर्णन इस पुस्तक में किया गया है।
वास्तव में स्वास्थ्य की दृष्टि से इसके गुणों को देखकर मुग्ध हो जाना पड़ता है। आयुर्वेद की अनेक औषधियों अर्थात् घृत, तेल आसव, अरिष्टों तथा चूर्णों में इसका सम्मिश्रण होता है। केवल हल्दी द्वारा अनेक रोग दूर किये जाते हैं।
पारद संहिता में इसके कल्प का वर्णन किया गया है जिसने एक वर्ष तक हल्दी और दूध का प्रयोग करने के लिये लिखा गया है। हल्दी को बारीक पीसकर कपड़े में रखकर दाँत के नीचे रखने से दाँत का दर्द दूर हो जाता है-हल्दी, नमक और सरसों के तेल का प्रतिदिन मंजन करने से दाँतों के रोग नहीं होते हैं। यह प्रयोग प्रयाग के प्रसिद्ध डॉक्टर स्व० रणजीत सिंह का बतलाया हुआ है।
कामला रोग में हल्दी 10 ग्राम, दही 450 ग्राम में मिलाकर देंगे से लाभ होता है। कामला को मंत्र द्वारा झाड़ने वाले भी हल्दी का प्रयोग करते हैं।
हकीम इसको यकृत में रुकावट हो जाने से हुये पीलिय (यरकान) तथा शरीर में पानी पड़ जाने में लाभकारी बताते हैं। हल्दी की गाँठों का ताजा रस घावों, चोट, जोंक, कटे घावों पा बलना लाभकारी है।
स्वर्गीय कविराज गणपति सिंह हल्दी के धार्मिक महत्त्व के सम्बन्ध में लिखते हैं कि "धार्मिकता के नाम पर हल्दी को इतना महत्त्व क्यों प्राप्त हुआ इसका इतिहास मुझे पढ़ने को नहीं मिला फिर भी वह शुभ कार्यों में सर्वप्रथम है।
बालक उत्पन्न होने पर हल्दी की गाँठें तथा चावलों का व्यवहार किया जाता है। घी में हल्दी को भूनकर बुकनी तैयार की जाती है। विवाह से पहले वर-वधू को हल्दी मिश्रित उबटन लगाया जाता है। इसी प्रकार द्विजातियों के यहाँ यज्ञोपवीत संस्कार में भी इसका व्यवहार होता है।
श्रीमद् भागवत् गीता में भी लिखा है कि भगवान कृष्ण की उत्पत्ति के समय गोप बधूटियों ने हल्दी, तेल मिला हुआ जल मिलाकर खुशियाँ मनाई थी। देवताओं के पूजन, हवन इत्यादि में भी यह काम आती है। तांत्रिक प्रयोगों में अर्थात् पीताम्बर देवी और दुर्गा के पूजन में भी यह कहकर इसका प्रयोग होता है-
हरिद्रा रचिते देवी सुख सौभाग्य दायिनी ! तस्मात्वां पूजयाभ्यत्र सुखं शांति प्रयच्छ मे !!
संस्कृत तथा हिन्दी के कवियों ने इसके द्वारा बने हुये कुंकुम (रोली) को पूजन तथा 'श्रृंगार की सामग्रियों में स्थान दिया है। तेलुगू तथा दक्षिण की स्त्रियाँ प्रतिदिन अपने अंगों में इसको लगाती हैं। हल्दी के नाम भी संस्कृत में बड़े सुन्दर-सुन्दर आये हैं जैसे हरिद्रा, कांचनी, योषितप्रिय, उमा इत्यादि और रात्रि के जितने नाम हैं, वही इसके भी हैं।
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